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गुरुर..

5 सितंबर 2025 by
sulekhnii@gmail.com

उलझने हैं भरी दिख रहा जुनून है

सामने तू है नहीं लेकिन तू जरूर है

याद है तेरी बस यादों का ही क़ुसूर है

न जाने मुझको आज भी किस बात का गुरुर है

कुछ तो बोल दिया होता